मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं है

परम आदरणीय मित्र बंधुवर ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं है अपना ये त्यौहार नहीं है || अपनी ये तो रीत नहीं है अपना ये व्यवहार नहीं है धरा ठिठुरती है सर्दी से आकाश में कोहरा गहरा है बाग़ बाज़ारों की सरहद पर सर्द हवा का ही पहरा है सूना है प्रकृति का आँगन कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं हर कोई घर में दुबका है नव वर्ष का ये ढंग नही है चंद मास इंतज़ार करो निज मन में तनिक विचार करो नये साल नया कुछ हो तो सही क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही उल्लास मंद है जन -जन का आयी है बहार अभी नहीं ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं अपना ये त्यौहार नहीं है ये धुंध कुहासा छंटने दो रातों का राज्य सिमटने दो प्रकृति का रूप निखरने दो फागुन का रंग बिखरने दो प्रकृति दुल्हन का रूप धर जब स्नेह – सुधा बरसायेगी शस्य – श्यामला धरती माता घर -घर खुशहाली लायेगी तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि को नव वर्ष मनाया जायेगा || आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर जयगान सुनाया जायेगा युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध आर्यों की कीर्ति सदा -सदा नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अनमोल विरासत के धनिकों को चाहिये कोई उधार नहीं ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं है अपना ये त्यौहार नहीं है अपनी ये तो रीत नहीं है अपना ये व्यवहार नहीं …………

6 टिप्‍पणियां:

  1. प्रस्तुत कविता रामधारी सिंह दिनकर जी की नहीं है I ये अंकुर 'आनंद' , १५९१/२१ , आदर्श नगर , रोहतक (हरियाणा ) की मौलिक रचना है I ये रचना दिनकर जी की किसी पुस्तक में नहीं मिलेगी I

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    1. Can you send some proof that this poem does not belong to ramdhari singh dinkar to my mail is?

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    2. https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF:AMIT_TAANK_NAMDEV

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  2. यदि यह रचना रामधारी सिंह दिनकर की नहीं है तो कृपया उन्हें बदनाम न करें ....

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