गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

BIHAR KE BHAVISHY KO LEKER CHINTAN KYA HOGA AAGE KA RASTA . .......? बिहार के भविष्य को लेकर चिंतन क्या होगा आगे का रास्ता ?

बिहार के भविष्य को लेकर चिंतन क्या होगा आगे का रास्ता ? जनक नंदिनी सीता और महात्मा बुद्ध के साथ ही भारती मंडन एवं बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाईं तथा कारु खिरहरि जैसे आध्यात्मिक चरित्रों की जन्म भूमि बिहार ने अनवरत व अनगिनत महान बिभूतियों को या तो कभी जन्म दिया है या कभी कर्म स्थल बन उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाने का कार्य किया है। सच माने में यही वो पवित्र धरती है जिसने भारत वर्ष को अपना प्रथम राष्ट्रपति देस रत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद दिया है तो राष्ट्र कवि दिनकर और फणीश्वर नाथ रेनू भी दिया है। चन्द्रगुप्त मौर्य व चाणक्य जैसे कुशल शासक व् नीतिज्ञ दिया है तो बशिस्ट नारायण सिंह जैसे गणितज्ञ भी। राज्य के रूप में 100 वर्ष पूरा करने बाले बिहार को आखिर आज हो क्या गया ? जिसने अपनी कोख से राष्ट्रीय आन्दोलन में अग्रणी किन्तु महत्वपूर्ण भूमिका निभाने बाले बीर कुवर सिंह, लोकनायक जयप्रकाश नारायण व् जननायक कर्पूरी ठाकुर सरीखे संघर्षशील नेता को जन्म दिया है। जिसने देस की तक़दीर और तश्वीर को बदलने का न केवल शंखनाद किया बल्कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी ने तो अपने ऐतिहासिक जीत के बाबजूद भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के उद्देस्य से सत्तासीन होने के बजाय सदन में बिपक्ष में बैठने का निर्णय लेकर ( देस क़ी तश्वीर बदलकर) इतिहाश ही गढ़ दिया। जिसकी चर्चा आज हर ब्यक्ति व बच्चा-बच्चा के जुवान पर होती रहती है। मैं मानता हूँ कि, कतिपय कारणों से सन 2000 में जो बिहार का बंटवारा हुवा उससे इसका भूगोल इस कदर बदला कि, सारा खनिज सम्पदा और वन संपदा जहाँ झारखंड को मिल गया वही बिहार प्रान्त मानो खनिज और वन सम्पदा विहीन ही हो गया। बिहार के पास बचा तो केवल एक चरमराया आर्थिक ढांचा और बिहार के महात्मा बुद्ध का तपस्या स्थल बोध गया मंदिर तथा नालंदा खुला विस्व विद्यालय जैसा विस्व धरोहर। जो पूरी दुनिया को अपनी और आकृष्ट तो करता ही है यहाँ आने बाले लोगों से बिहार और बिहारवासियों को समृद्ध भी प्रदान करता है . ऐसे धरोहर को हमें सहेजकर रखना है संसाधन ( खनिज और वन सम्पदा ) की अनुपलब्धता हमारी क्या बिगड़ लेगी ? ठाकुर अनुकूलचंद्र जी का मत है कि, लता का स्वाभाव अवलम्बन करने से संसाधनों कि अनुपलब्धता खलती नहीं। हमारे पास नदियां भी हैं और टैलेंट्स जैसा जिवंत अमूल्य निधि भी। जरुरत है यहाँ के उन टैलेंट्स को जिन्हे अपने प्रतिभा दिखाने का न तो अवसर मिल पा रहा है न ही उचित स्थान व संसाधन। अगर उन्हें उचित अवसर मिले उचित सम्मान / स्थान व संसाधन उपलब्ध करवायी जाय तो विदेशों में जाकर वहाँ के गौरव को बढ़ाने बाले हमारे बिहार की प्रतिभा बिहार का गौरव बढ़ाएंगे और बिहार को समृद्धशाली प्रान्त बनाने में हमारी सहायता करेंगे। खेल जो की आपसी भाईचारा व सौहार्द्र तथा शारीरिक मानशिक व बौद्धिक सबलता प्रदान करता है , के क्षेत्र में भी हमें ध्यान देना होगा। आज हमारे प्रान्त से अलग हुए प्रान्त झारखण्ड ने इंटरनेशनल स्टेडियम का निर्माण कर हमसे काफी आगे बढ़ने का काम किया है जबकि हमने प्रान्त के रूप में एक सौ बर्ष पूरा करने के बाद भी मोइनुल हक़ स्टेडियम का भी जीर्णोद्धार नहीं किया जो खेल प्रेमी और खिलाडियों के प्रति हो रही घोर उपेक्षा का उदाहरण है। इस प्रकार प्रान्त को मिलने बाला गौरव और रेवेन्यू से प्रान्त बंचित है। टैलेंट्स कि भी घोर उपेक्षा हो रही है। उसी प्रकार IIT कि इक्षा रखने बाले छात्रों को यहाँ से दूर कोटा / मेसरा / बंगलुरु / उड़ीसा आदि शिक्षण संस्थानों के लिए यहाँ से निकलना पड़ता है इससे हमारे यहाँ का धन दूसरे प्रांतों को चला जाता है हैम इसे रोक नहीं पाते हैं। जबकि हमारे पास संसथान के लिए प्रयाप्त भूमि और टैलेंट्स भी है , चिंता का विषय है। मैं मानता हूँ कि, पिछले राज्य सरकार के कुप्रबंधन, अदूरदर्शी-नीति व राज्य हित में लिए गए चरवाहा विद्यालय जैसे गलत फैसले एवं भर्ष्टाचार ने जिस मानव विकास सूचकांक ,शाक्षर्ता एवं निर्धनता की दृष्टि से बिहार को देस के सबसे निचले पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया था उसे बाद के काल खंड में यानि पिछले 10-11 बर्षों में बाद की सरकार ने बड़ी सूझ-बुझ के साथ इसकी बदसूरत तश्वीर की जगह एक अच्छी तश्वीर पेस करने की सत्प्रयास की है, उसके कुछ अच्छे परिणाम भी आये। कुछ नक्शलवाद क़ी घटना , जाती-पाती जैसे भेद-भाव को छोड़ बिहार विकास क़ी और अग्रषर भी हुवा जो एक अच्छा संकेत है। मेरा मानना है कि, बिनां केंद्रीय सहायता और विशेष राज्य के दर्जा पाये बिना भी बिहार और भी आगे बढ़ सकता है यह एक बिकषित प्रदेस भी बन सकता है। इसके लिए इसे केवल और केवल एक ईमानदार प्रशासनिक ब्यवस्था , दृढ इक्षा शक्ति और कुसल जल प्रबंधन के साथ ही यहाँ के टैलेंट्स व मेधावी छात्र - नौजवानों को एवं प्रोफ़ेशनल्स को उचित अवसर,सम्मान, स्थान तथा संसाधन उपलब्ध कराने की जरुरत है। गंगा , यमुना और कोशी को अपने गोद में धारण करने बाली यह पवित्र भूमि व वशुन्धरा ने बीच के काल खण्डों को छोड़कर हमेशा ही नैतिक व आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अग्रणी रहा है और राष्ट्र को सम्बल तथा विस्व को एक अच्छा संदेस देता रहा है। आज आवस्यकता है उस नींव को मजबूत करने की जिसपर मजबूत प्रान्त का स्वरुप खड़ा हो सकता है और वो है नैतिक शिक्षा। स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंदो सरीखे युग पुरुष व महान बिभूतियों के बताये अनुसार चूँकि स्वस्थ्य शिक्षा से स्वस्थ्य चिंतन और स्वस्थ्य चिंतन से वैयक्तिक , पारिवारिक सामाजिक एवं राष्ट्रीय आस्था का प्रादुर्भाव होता है और फिर एक स्वस्थ्य ब्यक्ति / समाज ही स्वस्थ्य राज्य व राष्ट्र का निर्माण कर सकता है अस्तु राष्ट्र निर्माण के सभी घटक को स्वस्थ्य रहने ही चाहिए। इस उद्देश्य से और खासकर सिमित संसाधनों के बाबजूद यदि हमें बिहार को आगे ले जाना है तो निश्चय ही बच्चों के पाठ्यक्रम में विज्ञानं के साथ आध्यात्म , तर्क , आस्था और दर्षन और सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा खेल-कूद को जोड़ने क़ी परम आवश्यकता है। ताकि बच्चों के सबलता और नैतिकता को बल मिल सके और नैतिक व संस्कारित होकर माताओं-बहनों एवं मानवीय मूल्यों की रक्षा के बदौलत स्वस्थ्य ब्यक्ति/ परिवार/ समाज व राष्ट्र का निर्माण हो सके। वास्तव में यही वह माध्यम भी हो सकता है जिसके बदौलत नैतिकवान व ईमानदार तथा जबाबदेह राजनीतिज्ञ , अधिकारी व दक्ष शिक्षक , जबाबदेह इंजीनियर्स , डॉक्टर्स , मेनुफेक्चरर इस प्रान्त को मिल सकता है। ठीक इसके बिपरीत चरित्रहीन, भ्रष्ट व कमजोर ह्रदय के ब्यक्तियों के समूहों से प्रान्त डूब जा सकता है। पुरे देस में 382 ब्यक्ति/ प्रति बर्ग किलोमीटर घनत्व देखा जाता है जबकि बिहार में 1102 ब्यक्ति/ प्रति बर्ग किलोमीटर घनत्व मौजूद है ऐसे में पर्यवरण संतुलन बनाये रखने के उद्देश्य से प्रदुषण जैसे संकट से अपने आने बाले भावी पीढ़ी के भविष्य की रक्षा करने हेतु पौध संरक्षण तथा प्रति ब्यक्ति / 1 बृक्ष लगाने की अवधारणा लेकर आगे बढ़ने से ही बिहार को ऊपर उठाया जा सकता है। 10 करोड़ 38 लाख कि आबादी बाला यह प्रान्त और जिसका लगभग 7% आबादी निःशक्तों की है। चूँकि इन सीमित संसाधनों पर बिहार के बिकास का बहुत बड़ा बोझ है और इसके साथ ही इन 7 % निःशक्त जनों के कल्याण की भी एक बड़ी जिम्मेवारी आ पड़ी है , स समय उचित कदम नहीं उठाया गया तो इसका बड़ा ही प्रतिकूल असर पड़ेगा / बड़ा जोखिम उठान होगा। प्रति ब्यक्ति आय के दृष्टिकोण से भी यदि देखा जाय तो यहाँ प्रति ब्यक्ति / वर्ष आय महज 16592 रूपये मात्र है जो राष्ट्रीय औसत आय के स्तर से बहुत कम है। वहीँ यहाँ गरीबी रेखा से नीचे रहने बालों की आबादी भी 54% है जो पुरे देस में सर्वाधिक है। इन्हे मिलने बाली केन्द्रीय सहायता राशि भी 679.26 रूपये प्रति ब्यक्ति मात्र है जो ऊंट के मुह में जीरा के सामान है। वैसे तो बिहार के पिछड़े राज्य होने के प्राकृतिक कारक भी बिद्ध्मान हैं। हिमालय की ढलान क्षेत्र होने के कारण प्रति बर्ष आने बाली बाढ़ से जहाँ हमें अपूर्णीय छति होती है। वहीं, अंतर्राष्ट्रीय सीमा होने के कारण कई कठिनाईयों का भी सामना करना पड़ता है फलस्वरूप विकास पर प्रतिकूल असर पड़ता है। उत्तर बिहार में बाढ के कारण जहाँ किसानो की फसलें नष्ट हो जाती है और कई माह तक भोगोलिक संपर्क भंग हो जाता है वहीँ दक्षिणी बिहार में सुखाड़ के कारण आम लोगों का जीवन दूभर हो जाता है। वही फसलों के सुख जाने से किसानो की माली हालत खास्ता भी हो जाती है। इस प्रकार कमजोर अर्थव्यवस्था वाला यह प्रान्त भोगोलिक दुर्गम भू क्षेत्र का मार तो झेलता ही है कमजोर आधारभूत संरचना और 10 करोड़ 38 लाख कि बड़ी आबादी ( अधिक जनसंख्या घनत्व होने ) के कारण बिसेष दंस भी झेलता है। आज के सभी शिक्षण संसथान , शिक्षण संस्थान कम ब्यवसायिक संसथान ज्यादा प्रतीत हो रहे हैं ठीक इसी तरह चिकित्सकों ने भी अपनी नैतिकता खो दी और कमोबेश प्राइवेट नर्सिंग होम / चिकित्सालय की स्थिति भी वही हो गयी है। जिन्हे आज भी लोग भगवान् ही मानते हैं पैसे के पीछे दौड़ लगाने के कारन वो भी भगवान् के दायरे से काफी दूर निकलते जा रहे हैं। अब यह भगवान का मंदिर भी एक ब्यवसायिक संसथान बनकर रह गया है। हद तो यह कि जिन माँ की कोख ने हमें जन्म दिया , चंद पैसे के खातिर हमने उनकी उन कोख तक को उजाड़ना नहीं छोड़ी। पटना के एक महान चिकित्सक स्वर्गीय डॉ शिवनारायण सिंह का नाम बिहारवासी बड़े ही आदर और सम्मान के साथ आज भी लिया करते हैं। जिन्होंने जीवन पर्यन्त पैसे कि नहीं मानवता और अपने दायित्व की चिंता की। मेरे बिचार में अतीत की शिक्षा पद्धति गुरुकुल ब्य्वस्था और होस्टल युक्त शिक्षण संसथान ने प्रायः ऐसे महान बिभूतियों व आदर्शवान प्रतिभाओं / बलिदानियों को जन्म दिया है। इसमें जब-जब सोध की गयी परिणाम उल्टा अर्थात नैतिक पतन होता गया और फलस्वरूप लोकतंत्र बिरोधी या समाज बिरोधी परिणाम हमें झेलना पद रहा है । आज समान कार्य के लिए समान बेतन की मांगे बड़ी जोर से उठ रही है जो जायज भी प्रतीत होता है। मेरे बिचार से वेतन विसंगति और शिक्षा से इतर जबतक बिभिन्न सरकारी कार्यों में शिक्षकों को जोड़ा जायेगा शिक्षकों का मनोबल टूटेगा और शिक्षण कार्यों में बड़ी बाधा भी आती रहेगी और फिर बिकसित बिहार का सपना सपना बनकर ही रह जायेगा। जिस शिक्षा पद्धति से वर्ग भेद गरीबी और अमीरी का बदबू आता हो हमें वैसी शिक्षा पद्धति से भी बचना होगा। आज बड़े लोगों के बच्चे का विद्यालय कुछ और होता है जबकि गरीब गुरबों के बच्चों का कुछ और जो अच्छा नहीं है गुरुकुल में इस तरह कि विसंगति नहीं देखि जाती है। अस्तु समान अवधारणा के साथ बिधि व्यवस्था और पॉवर सेक्टर में सुधार लाकर बड़ी- बड़ी फैक्टरियां के अतिरिक्त शिक्षा ,स्वास्थ्य , रोड ,कृषि , छोटे और मझोले उद्धोग धंधे व कल-कारखाने पर ज्यादा सक्रीय होकर आगे बढ़ने से ही बिहार को ऊपर उठाया जा सकता है। यहाँ की सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा ही क्रन्तिकारी कदम उठायी ' मिडडे मील ' जिसमे मानवीय चुक या भूल के कारण नाहक नौनिहाल बच्चों की जाने जाती है ऐसे में मोहन साह आदर्स आवासीय मध्य विद्यालय बरियाही एवं नेतरहाट विद्यालय के तर्ज पर या रामकृष्ण मिशन के तर्ज पर गुरुकुल ब्यवस्था या होस्टल युक्त ब्यवस्था भी दी जा सकती है। उचित जल प्रबंधन से बिहार में बिजली उत्पादन, पारम्परिक फसलों गेहूं धान , मक्का दलहन और तेलहन की खेती के अतिरिक्त गन्ने और जुट की खेती तथा मत्स पालन के साथ ही मुर्गा पालन तथा सूअर पालन का कार्य भी किया जा सकता है वहीँ कोशी की बिभीषिका से भी बचा जा जा सकता है। उन्नत नस्ल कि गाय व उन्नत बीज, खाद के साथ ही अतिवृष्टि व अनावृष्टि से होने बाले क्षति से बचने के लिए यदि फसल बिमा , अपने यहाँ उपजे खाद्यान पदारतों को रूपांतरित कर जैसे आलू का चिप्स बनाकर बाजार के लायक तैयार कर एक्सपोर्ट करने से शायद हम अधिक समृद्ध हो सकते है। इसके लिए जरुरी इस बात का कि , बैंकिंग सहायता राशि स समय कम ब्याज दरों पर उपलब्ध करायी जाय तो बिना बिलम्ब के प्रान्त अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा। हमें यह ध्यान रखना होगा कि , विकसित बिहार के बिना विकसित भारतवर्ष की कल्पना कतई नहीं की जा सकती। आर.टी.एन. डॉ. रवींद्र कुमार सिंह पीएचएफ रोटरी इंटर नेशनल & बिभाग सह संयोजक धर्मजागरण समन्वय विभाग कोशी प्रमंडल , सहरसा 9431243115

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें