शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

स्वच्छ भारत - स्वस्थ्य भारत बनाने में शिक्षण संस्थानों एवं छात्रों की भूमिका

स्वच्छ भारत - स्वस्थ्य भारत बनाने में शिक्षण संस्थानों एवं छात्रों की भूमिका स्वच्छता, निर्मलता, स्वातंत्रय, स्वावलम्बन, सत्य, सदाचार, एवं सहयोग को गांधी ने जीवन का अनिवार्य तत्व/ तत्त्व एवं उपलब्धि का अमिय उत्स माना है. उन्हीं के शब्दों में - "स्वच्छता के बगैर भक्ति असंभव है, भक्ति से ईश्वर की प्राप्ति होती है और ईश्वर के अतिरिक्त इस दुनियां में और किसी के पास हमारे जीवन में समृद्धि एवं शांति का संचार करने की शक्ति नहीं - क्या तुम्हें भी जीवन में समृद्धि एवं शान्ति चाहिए (?) तो अंततः वाह्य स्वच्छता-निर्मलता लाए बिना उसकी प्राप्ति संभव नहीं" - यह गांधी का मात्र उद्घोष वाक्य नहीं था; बल्कि उनके जीवन का मूलमंत्र भी था. भारत में शास्त्रों ने भी शुचिता-पवित्रता पर काफी जोर दिया है। यही कारण है कि किसी भी अनुष्ठान / उत्सव/ समारोह का आयोजन बिना शुचिता-स्वच्छता के सम्भव ही नहीं है। इसीलिए तो पूजा व अनुष्ठान से पूर्व हम 'ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वास्थां गतोपि वा य:स्मरेत् पुण्डरी काक्षं स वाह्याभ्यन्तरः शूचिः' मन्त्रोक्त बिधि से अपने वाह्य अभ्यंतर को स्वच्छ व पवित्र कर पूजा आरम्भ करते हैं। स्वच्छता के प्रति राष्ट्रपिता की कठोरता को लोकसेवक संघ के संवैधानिक मसौदे से भी परखा जा सकता है, जिसमे कहा गया है की 'कार्यकर्ता को गाँव की स्वच्छता एवं सफाई के बारे जागरूक करना चाहिए' और गांव में फैलने बाली बिमारियों को रोकने के लिए सभी जरुरी कदम उठाने चाहिए। आम भारतियों में स्वच्छता के प्रति अरुचि को वो विनाशकारी मानते थे। 1916 के मिशनरी सम्मलेन में भाषण के दौरान उन्होंने गांव की स्वच्छता के मामले को जोर से उठाया तथा उसके अविलम्ब समाधान की बात की। उन्होंने स्कूली और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में स्वच्छता को तुरंत शामिल करने पर जोर दिया। गुरुकुल कांगड़ी के 20 मार्च,1916 के अपने भाषण में बापू ने स्वच्छता एवं सफाई के नियमों के साथ ही उसके कठोर पालन को प्रशिक्षण का अभिन्न अंग मानते हुए कहा था कि अगर ऐसा नहीं होता है तो माना जाएगा कि 'शिक्षा अपने उद्देश्य में विफल रही है'। चंपारण आंदोलन के क्रम में भी गांधी जी ने सफाई एवं स्वच्छता की महत्ता की चर्चा करते हुए अंग्रेज प्रशासन से सफाई को शिक्षा में समाहित करने का आग्रह किया था। गांधी जी द्वारा 1920 ईo में स्थापित गुजरात विधापीठ के शिक्षकों, कर्मियों एवं छात्रों के लिए क्वार्टरों, गलियों, नालियों, कार्यालयों, स्थलों, परिसरों आदि की नित्य सफाई करना अनिवार्य माना गया था। तात्पर्य यह है कि गांधी ने शिक्षा, शिक्षार्थी एवं सफाई को एकरूप करने का आह्वान किया था तथा कहा था कि 'बिना शिक्षण संस्थानों एवं छात्रों को स्वच्छता का मन्त्र बताए इस अभियान को परिणति तक पहुँचाना अत्यंत कठिन है'। विश्व पैसिफिक इंस्टिट्यूट के आंकड़ों के अनुसार भारत की अधिकांश आबादी सुरक्षित स्वच्छता से काफी दूर है, 2008 सर्वेक्षण में मात्र 30% जनसँख्या 52% शहरी एवं 20% ग्रामीण ही स्वच्छता के करीब थी। यूनिसेफ एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट 2012 के मुताबिक भारत की 50% आबादी अर्थात 62.6 करोड़ लोग खुले में शौच जाते हैं जबकि सरकार का संकल्प था कि वर्ष 2012 तक भारत को निर्मल एवं स्वच्छ घोषित कर दिया जायगा। सम्पूर्ण स्वच्छता का सम्बन्ध प्रत्येक घर, विधालय एवं सार्वजानिक स्थल पर उपयोगी शौचालय के निर्माण और अपशिष्ट पदार्थ के प्रबंधन से है, न कि मात्र शौचालय का ढांचा खड़ा कर देने से। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत के कुल 16.78 करोड़ घरों में से मात्र 5.48 करोड़ घरों में हीं शौचालय बन पाये हैं अर्थात 67.3%घरों की पहुँच अब भी स्वच्छता सुविधा तक नहीं हो पायी है। गांधी जयंती के अवसर पर २ अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत करते हुए 2019 ईo तक भारत को स्वच्छ बनाने की घोषणा की है तथा इस हेतु ब्यक्तिगत, सामूहिक एवं सामुदायिक शौचालय के निर्माण,पाइपलाइन द्वारा जल की समुचित उपलब्धि तथा अपशिष्ट प्रबंधन पर जोर दिया गया है। 1.77 करोड़ की दर से 8.84 करोड़ को स्वच्छ भारत निर्माण हेतु शौचालय प्रोत्साहन शौचालय निर्माण की बृद्धि दर 3% से बढ़ाकर 10% करना, 14000 शौचालय प्रतिदिन निर्माण को बढ़ाकर 48000 प्रतिदिन करना समय पर काम को सख्ती से लागु करना पंचायतों को कौशल से लैस करना शिक्षण संस्थानों को संवेदनशील एवं समाज के प्रति उत्तरदायी बनाना आदि स्वच्छ भारत परिवारों निर्माण की कार्ययोजना मानी गयी है, सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक पदम भूषण श्री बिन्देश्वर पाठक ने सरकार को भेजी अपनी कार्ययोजना में स्पष्ट किया है कि, अगर दो लाख लोगों को प्रशिक्षित कर इस काम में लगाया जाय तो एक प्रशिक्षित व्यक्ति के जिम्मे 13 गाँव अर्थात 3000 शौचालय निर्माण (प्रतिवर्ष 600 शौचालय निर्माण ) की जिम्मेवारी होगी जिसे आसानी से पूरा किया जा सकता है . सुलभ आंदोलन के तहत to put pour flush compost toilet पर्यावरण अनुकूल, सस्ता और सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य माना गया है तथा इस प्रोधोगिकी में मानव मॉल या अपशिष्ट का पुनर्चक्रण कर उसे जैव उर्बरक में परिवर्तित किया जाता है तथा फ्लश में मात्र एक लीटर पानी की खपत होने से पानी का संचय भी हो पाता है। इस तरह कम खर्च में/ कम समय में देश में शौचालय बंचित तीन लाख विधालय भी शौचालय युक्त हो जाएंगे और देश को गांधी जी 150 वीं जयंती (2019) के पूर्व खुले शौच की प्रवृति एवं प्रतीति से मुक्ति मिल सकेगी। बापू ने कहा था कि अगर हम अपने घरों एवं ग्रामों को साफ को नहीं रख सकते तो स्वराज की बात बेमानी होगी। गुजरात विधापीठ ने पिछले दो बर्षों में 1300 से अधिक शौचालयों का निर्माण बगल के गांवों में कराकर न केवल स्वच्छता अभियान को बल दिया है, बल्कि शैक्षिक संस्थानों की सामाजिक जबाबदेही का भी परिचय दिया है और वास्तव में गांघी जी यही चाहते भी थे . शिक्षा और स्वच्छता की चर्चा करते हुए वर्ष 1933 में गांधीजी ने स्वयं लिखा था और 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीवगांधी ने जिसे आगे बढ़ाया - ' शिक्षा देने के लिए तीन आर (रीडिंग, राइटिंग एवं रेमेम्बरिंग ) का ज्ञान होना ही काफी नहीं है। शिष्टाचार एवं स्वच्छता तीनों आर (रीडिंग, राइटिंग एवं रेमेम्बरिंग ) की शिक्षा से पहले अपरिहार्य है'। गांधी ने तीनों आर (रीडिंग, राइटिंग एवं रेमेम्बरिंग ) की शिक्षा को स्वच्छता के बिना महत्वहीन एवं अर्थहीन कहा। शिक्षण संस्थानों को गांधी ने स्वच्छता एवं संस्कार का अग्रदूत कहा था। अतएव मेरे विचार से स्वस्थ एवं स्वच्छ भारत निर्माण हेतु आम जन में जागरूकता एवं मानवीय संवेदनशीलता निर्माण में छात्रों की भूमिका विभिन्न रूपों में - छात्र रूप में, घर के बच्चों के रूप में, दबाव समूहों के रूप में, नौनिहालों के रूप में साथ ही स्वच्छ भारत निर्माण के अग्रदूत के रूप में प्रभावी एवं प्रसारी हो सकती है। और इससे मानवाधिकारों की रक्षा भी होगी। रवींद्र कुमार सिंह Mobile No - 9431243115

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